17 सालों से भट्ठा मजदूरों के हकों के लिए कर रहे संघर्ष

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वर्ष 1999 की बात है वे कैलरम गांव के नजदीक स्थित ईट-भट्ठा पर काम करते थे। मनमर्जी के रेट मजदूरों को दिए जाते थे। स्वास्थ्य सेवाएं तो दूर की बात स्वच्छ पानी तक की सुविधा भी नहीं थी। मजदूर जब हिसाब करवाते थे तो उनकी तरफ पैसा निकलने पर इस रकम को चुकता करने के लिए उनके परिवार को बंधक बना लिया जाता था, जब तक राशि नहीं मिलती थी तब तक परिवार भट्ठों पर ही बंधक बनकर रहता था। मजदूरों के साथ हो रहे इस शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए संघर्ष की राह पकड़ ली। यह कहना है लाल झंड़ा भट्ठा मजदूर यूनियन के जिला सचिव जसपाल का। वे पिछले 17 सालों से भट्ठा मजदूरों के हकों की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने दस साल तक परिवार के साथ भट्ठा पर मजदूरी की।